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Friday, September 19, 2014

हर शख्स तो बिकता नहीं है

एक गजल
हर शख्स तो बिकता नहीं है
·    राजेश त्रिपाठी
खुद को जो मान बैठे हैं खुदा ये जान लें।
ये सिर इबादत के सिवा झुकता नहीं है।।

वो और होंगे, कौड़ियों के मोल जो बिक गये।
पर जहां में हर शख्स तो बिकता नहीं है।।

दर्दे जिंदगी का बयां कोई महरूम करेगा।
यह खाये-अघाये चेहरों पे दिखता नहीं है।।

पैसे से न तुलता हो जो इस जहान में ।
लगता है अब ऐसा कोई रिश्ता नहीं है।।

जिनके मकां चांदी के , बिस्तर हैं सोने के।
उन्हें इक गरीब का दुख दिखता नहीं है।।

इक कदम चल कर जो मुश्किलों से हार गये।
उन्हें मंजिले मकसूद का पता मिलता नहीं है।।

वो और होंगे जो निगाहों में तेरी खो गये।
जिंदगी के जद्दोजेहद में, प्यार अब टिकता नहीं है।।

मत भागिए दौलत, शोहरत की चाह में।
तकदीर से ज्यादा यहां मिलता नहीं है।।

सुहाने ख्वाब दिखा ऊंची कुरसियों में बैठ गये।
लगता है उनका मजलूम के दर्द से रिश्ता नहीं है।।

यह अंधेरा दिन ब दिन घना होता जा रहा है मगर।
उम्मीद का सूरज हमें अब तलक दिखता नहीं है।।

आइए अब तो हम ही कोई जतन करें।
मंजिलों तक जो ले जाये राहबर दिखता नहीं है।।

आपाधापी मशक्कत में ना यों बेजार हों।
यहां किसी को मुकम्मल जहां मिलता नहीं है।।

चाहे जितने पैंतरे या दांव-पेंच खेले मगर।
किस्मत पे किसी का दांव तो चलता नहीं है।।

चाहे कुछ भी हो हौसला अपना बुलंद रखिएगा।
हौसला ही पस्त हो तो काम फिर बनता नहीं है।।



उनकी जुबां पे ताले पड़े हैं

एक गज़ल

उनकी जुबां पे ताले पड़े हैं

 राजेश त्रिपाठी
सदियां गुजर गयीं पर, तकदीर नहीं बदली।
मुफलिस अब तलक जहान में, पीछे खड़े हैं।।

औरों का हक मार कर, जो बन बैठे हैं अमीर।
उन्हें खबर नहीं कैसे-कैसे लोग तकदीरों से लड़े हैं।।

पांव में अब तलक जितने भी छाले पड़े हैं।
वे न जाने कितने बेबस लिए नाले खड़े हैं।।

कोई रहबर अब तो राह दिखलाए ऐ खुदा।
जिंदगी के दोराहे पे , हम जाने कबसे खड़े हैं।।

उनको अपनी शान-शौकत की बस है फिकर।
कितने गरीब मुसलसल, बिन निवाले के पड़े हैं।।

उनकी दहशत, उनके रुतबे का है ये असर।
मजलूम खामोश हैं, उनकी जुबां पे ताले पड़े हैं।।

चौराहे पे भीख मांगता है, देश का मुस्तकबिल।
उनको क्या फिकर, जिनके जूतों में भी हीरे जड़े हैं।।

मुल्क का माहौल अब पुरअम्न कैसे हो भला।
हैवान जब हर सिम्त हाथों में लिये खंजर खड़े हैं।।

किसी बुजुर्ग के चेहरे को जरा गौर से पढ़ो।
हर झुर्री गवाह है, वो कितनी आफतों से लड़े हैं।।

आप अपनी डफली लिए, राग अपना छेड़िए।
छोड़िए मुफलिसों को , आप तकदीर वाले ब़ड़े हैं।।

चांदी-सोने की थाल में जो जीमते छप्पन प्रकार।
खबर उनकी नहीं, जिंदगी के लिए जो कचडों से भिड़े हैं।।

आपका क्या, मौज मस्ती, हर मौसम त्यौहार है।
कुछ नयन ऐसे हैं, जिनके हिस्से सिर्फ आंसू ही पड़े हैं।।

इनसान होंगे जो इनसानों की मुश्किल जानते।
आप तो लगता है कि इनसानों से भी बड़े हैं।
* नाले = विलाप, चीख-पुकार
* पुरअम्न = शांतिपूर्ण

Wednesday, July 23, 2014

एक गजल

प्यार की बातें करें
राजेश त्रिपाठी
 
सिर्फ लफ्फाजी हुई है अब तलक।
आइए अब काम की बातें करें।।
कदम तो उठ गये जानिबे मंजिल मगर।
पेशेनजर है जो उस तूफान की बातें करें।।
कोठियों में तो रोशनी चौबीस घंटे है।
अब जरा झोंपड़ी की शाम की बातें करें।।
रेप, मर्डर, लूट का अब बोलबाला है जहां।
शांति के उस दूत हिंदोस्तां की बातें करें।।
योग्यता है पस्त, चमचों की चांदी हो जहां।
नये इस आगाज के अंजाम की बातें करें।।
मेहनतकशों के पसीने के गारे से बनी हैं कोठियां।
फुटपाथ पर जिसका हो बसर,अवाम की बातें करें।।
हर सिम्त, हर शख्स के हाथों में खंजर है जहां।
नफरतों के उस बियबां में, प्यार की बातें करें।।
स्वार्थ के साये में जहां, पिस रही है जिंदगी।
उस बुरे हालात में, उपकार की बातें करें।।
मजहब के नाम पर जो, मुल्क को बांटा किये।
आइए अब तो उसके, परिणाम की बातें करें।।
जुल्म सहते रहे जो, मुसलसल मुल्क में।
उनके सीने में घुमड़ते, तूफान की बातें करें।।
एक मकसद, एक जज्बा, एकता का संदेश दे।
आइए अब उस पयामे, खास की बातें करें।।
देश के हालात , बद से बदतर हो रहे।
हालात ये बदलें, आओ अब ऐसी  बात करें।।
हाथ में ले फूल, दोस्ती हम चाहते।
एक ऐसा मुल्क, पीठ पीछे जो घातें करे।।
लिखने से हालात अब बदलेंगे नहीं।
फिर भला क्यों हम बेकार की बातें करें।।
फर्ज समझा इसलिए यह लिख दिया।
आपका क्या, आप बस बहार की बातें करें।।
आग ये आपके दामन तक  पहुंचेगी हुजूर।
आइए अब मुल्क के उद्धार की बातें करें।।

Thursday, June 12, 2014

एक गज़ल



नजारों में वो बात न थी


वो लमहे जब तू मेरे पास न थी।
ज्यों जिंदगी मेरे पास न थी।।
यों बहारें थीं समां सुहाना था।
तेरे बगैर नजारों में वो बात न थी।
ख्वाबों की महफिल उदास थी।
नगमें सभी थे ज्यों खोये हुए।।
हम तेरी याद में जागा किये।
अश्कों से दामन भिगोये हुए।।
तुम गयी  याद तो साथ थी।
जिसके सहारे कटे रात-दिन।
तेरी फुरकत* में ओ बेवफा।
दिन गुजरे पल-छिन गिन-गिन।।
जालिम थी तेरी तिरछी नजर।
वो पड़ी तो दिल घायल हुआ।।
तू लाजवाब है लासानी है।
इस बात का कायल हुआ।।
तेरी पायल की रुनझुन।
कंगना की खनक।
आंखों की तेरी निराली चमक।
सब बेमिसाल है बाकमाल है।
इनकी न दूजी मिसाल है।।
तू है तो जिंदगी के हैं मायने।
तू नहीं तो सभी कुछ बेकार है।।
तू जमीं की फसले बहार* है।
तू सरापा* बस प्यार है प्यार है।।
पड़ जायें जहां नाजुक कदम।
जिंदगी झूम कर गाने लगे।।
खिजां में बहारें हंसने लगें।
गमजदा शख्स मुसकाने लगे।।
तेरे हुस्न का ऐसा कमाल है।
हर तरफ बस इसका जमाल है।।
नयन तेरे बिन बेचैन हैं।
दीदार का बस सवाल है।।
तू जो आये करार आ जाये।
जिंदगी में बहार आ जाये।।
तेरी नफरत भी ऐसी है।
इस नफरत पे प्यार आ जाये।।
      -राजेश त्रिपाठी
फुरकत*= जुदाई, विछोह
फसले बहार*= वसंत ऋतु
सरापा* सर से पैर तक
(स्केच-प्रियंका पाटिल-साभार)


Monday, June 9, 2014

स्वागत



निजामे हिंद को मोदी जो मिल गया
इक शख्श फर्श से यों अर्श तक है तन गया।
सूरमा थे जितने अर्श के बौना वो कर गया।।
कीचड़ जहां दुश्मनों की तरफ से उछाले गये।
वो सभी उसके लिए बन कमल हैं खिल गये।।
हिंद को अब शासक नहीं सेवक है मिल गया।
ताब जिसकी देख  हर दुश्मन है हिल गया।।
मुद्दत के बाद इक सच्चा रहबर है मिल गया।
निजामे हिंद को आला मोदी जो मिल गया।।
माना कि राह में कांटे हैं, हैं दुश्वारियां भी हैं।
कच्चा नहीं खिलाड़ी, इधऱ तैयारियां भी हैं।।
अब कारवां तरक्की फिर  से रवां दवां होगा।
जुल्मो-सितम का आलम, हिंद से हवा होगा।।
सब यही सोचते हैं कि, अब क्या, कैसा होगा।
बदतर नहीं, अब जो भी होगा बेहतर होगा।।
आओ खैरमकदम करें उनके अब आने का।
अब तो खत्म हो दौर, गम के फसाने का।।
युग नया जो लाया है,उसे यह एहसास है।
उस पर अवामे हिंद ने किया विश्वास है।।
वह उनकी उम्मीदों को नयी  जान देगा।
यकीं हैं हिंद को आला पहचान भी देगा।।
इंसां है इरादों में अटल, कर दिखायेगा।
लगता है देश में वो रामराज्य लायेगा।।
अब न जाति-भेद से कोई उदास होगा।
हर सिम्त अब तो  बस विकास होगा।।
पूरे होंगे अब सभी जिनके जो भी ख्वाब हैं।
अरसे के बाद मुल्क में हुआ सही इंतिखाब है।।
मां का लिया आशीष, अभय वरदान मिल गया।
मुसकाया हिंदुस्तान हर इक का दिल खिल गया।।

         -राजेश त्रिपाठी

युग नया




युग नया जो आया संदेश दे रहा है

युग नया जो आया संदेश दे रहा है।
दुख के दिन बीते, देश बढ़ रहा है।।
अच्छे दिन तो जैसे आ ही गये हैं।
मोदी युग-नायक से छा ही गये हैं।।
      सपनों को अब मिल गयी हैं राहें।
      खुल गयीं हैं विकास की भी बाहें।।
      हर दिशा में अब नव उल्लास होगा।
      अब तो हर पल बस विकास होगा।।

दुनिया के सारे नेता साक्षी बने हैं।
सेवक मोदी देश नायक जो बने हैं।।
वे देश की दशा को संवारने चले हैं।
जानते हैं दुख, गरीबी में जो पले हैं।।
हे जगत के नियंता तुम साथ-साथ रहना।
बदले भारत- भाग्य इतना करम तो करना।।
सदियों से दुख भोगा,शोषित रहे जो वंचित।
उनको न तोड़ना, सपने जो इनके संचित।।
आसेतु हिमालय, ये देश खिल गया है।
सच्चा देश नायक, उसे मिल गया है।।
उनको है भरोसा वह कर दिखायेगा।
इस देश में वह रामराज्य लायेगा।।
दृढ़प्रतिज्ञ है वह, इरादे का अटल है।
नजर में उसकी अब विश्व पटल है।।
दुनिया में फिर भारत का मान होगा।
उसकी प्रतिभा का फिर सम्मान होगा।।
प्राची में उग गया है नवल नव दिवाकर।
समता के प्रकाश से भर जायेगा घऱ-घर।।
मोदी है जिसका नाम, है सच्चा सिपाही।
उसका हर इक कदम दे रहा है गवाही।।
संस्कृति का हामी, भारत मां की संतान है।
वाणी में है भारत, सांसों में हिंदोस्तान है।।
विष-बोल उसने झेले, अविचल रहा हमेशा।
क्या आपने कभी हिम्मती है देखा ऐसा।।
मुदित होगा भारत मोदी जो आ गये हैं।
हर दिल में बन उम्मीद जो छा गये हैं।।
बस यही है प्रार्थना प्रभु आप साथ देना।
पुण्यभूमि भारत को गौरव उसका देना।।
                  -राजेश त्रिपाठी