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Sunday, July 11, 2010

लिखूं गजल इक तेरे नाम

लिखूं गजल इक तेरे नाम


-राजेश त्रिपाठी

तेरी हंसी को सुबह लिखूं,

और उदासी लिखूं शाम ।

आज बहुत मन करता है,

लिखूं गजल इक तेरे नाम।।

जुल्फें ज्यों सावन की घटा,

चेहरे में पूनम सी छटा ।

नीलकंवल से तेरे नयन,

मिसरी जैसे मीठे बचन।।

गालिब की तुम्हें लिखूं गजल,

और लिखूं इक छवि अभिराम।। (लिखूं गजल---)

सुंदरता को कर दे लज्जित,

ऐसी तू शफ्फाक बदन।

तेरे कदमों की आहट से,

खिल उठे मुरझाया चमन।।

तुझे जिंदगी लिखूं मैं,

और एक खुशनुमा पयाम।। (लिखूं गजल---)

मतलब भरे जमाने में,

इक गम के अफसाने में।

तुम ही हो इक आस किरण,

बस तुम ही हो जीवन धन।।

तुमको ही दिन-रात लिखूं,

लिखूं तुम्हें ही सुबहो-शाम (लिखूं गजल---)

आती जाती सांस लिखूं,

इक मीठा अहसास लिखूं।

जीवन का पर्याय लिखूं,

और भला क्या हाय लिखूं।।

तुम्हें लिखूं दिल की धड़कन,

खुशियों की हमनाम लिखूं। (लिखूं गजल..)

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