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Wednesday, January 2, 2019

गीत

हाथ खाली हैं बिटिया सयानी हो गयी
राजेश त्रिपाठी

मुश्किलें हैं और जाने कितने अजाब हैं।
जिंदगी की बस इतनी कहानी हो गयी।।
अधूरे रह गये जाने कितने ख्वाब  हैं।
मुश्किलों के हवाले जिंदगानी हो गयी।
दर्द कौन पढ़ सकता है उस शख्स का।
हाथ खाली है, बिटिया सयानी हो गयी।।
सियासत की चालों का है ऐसा असर।
हर गली कुरुक्षेत्र की कहानी हो गयी।।
नफरतों  के  गर्त में है अब जिंदगी ।
अमन तो अब बीती  कहानी हो गयी।
तरक्की का ढोल तो सब पीट रहे हैं ।
पर बद से बदतर जिंदगानी हो गयी।।
बढ़ रहे हैं अब दिलों के बीच फासले।
एकजहती तो अब  बेमानी हो गयी।।
दिल में नफरत, हाथ में खंजर जहां।
अमन की बात इक कहानी हो गयी।।



Wednesday, December 5, 2018

एक गजल


कोई अपना बिछड़ गया होगा
राजेश त्रिपाठी
देखो कुटिया का दम अब घुटता है।
सामने इक महल आ तना होगा।।
उसकी आंखों में अब सिर्फ आंसू हैं।
सपना सुंदर-सा छिन गया होगा।।
वह तस्वीरे गम मायूसी है ।
वक्त ने हर कदम छला होगा।।
उसको मुसलसल है इक तलाश।
कोई अपना बिछड़ गया होगा।।
जिस्म घायल है, दिल पशेमां है।
सानिहा* कोई गुजर गया होगा ।।
थक के बैठा है दरख्तों के तले ।
जानिबे मंजिल है, ठहर गया होगा।।
हर तरफ जुल्म औ दौरे मायूसी है।
कारवां इंसाफ का ठहर गया होगा।।
उसका चेहरा किताब है दिल का।
हर तरफ दर्द ही दर्द लिखा होगा।।
ख्वाबों के सब्जबाग जाने कहां गये।
अब तो हसीं सपना बिखर गया होगा।।
वह गरीब है बारहा* करता फांकाकसी।
तरक्की का कारवां कहीं ठहर गया होगा।।
रो रही है जार-जार कोई दुख्तर ।
जख्म कोई अजनबी दे गया होगा।।
कलम कुंद है लब खामोश से हैं।
सच कहनेवालों पे संगीनों का पहरा होगा।
उसकी चीख का भी ना हो सका असर।
लगता है निजामे वक्त भी बहरा होगा।।
आपको इनसानियत का है वास्ता।
सुधारो मुल्क वरना दर्द ये और भी गहरा होगा।।
.........................................................
सानिहा* =दुर्घटना, हादसा, मुसीबत
बारहा*= अकसर, बारबार, बहुधा
दुख्तर* =बेटी, पुत्री
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गीत

पूरी दुनिया गाती अब तक जिसकी शौर्य कहानी
राजेश त्रिपाठी
नहीं  झुके हैं नहीं  झुकेंगे  हम  वीर बलिदानी
हम हिंदुस्तानी, हम हिंदुस्तानी, हम हिंदुस्तानी।।

वीर शहीदों के बलिदानों से हमने पायी थी आजादी।
दिल बोझिल है, आंखें नम, देश की  लख बरबादी।।
केसर  क्यारी सिसक रही धधक रहा  कश्मीर  है।
भू-स्वर्ग  दोजख  बन बैठा सही ना जाती पीर है।।

बच्चों के  हाथों में  पत्थर, लख होती  हैरानी।
हम हिंदुस्तानी, हम हिंदुस्तानी, हम हिंदुस्तानी।

भेज रहा आतंक की  खेपें, ऐसा  है शैतान।
पाक तो जैसे खो चुका है धर्म और ईमान।।
देश-विरुद्ध देश के  बच्चों  को जो  बहकाये।
‘ कश्मीर चाहे आजादी हरदम बांग लगाये।।

कश्मीरियों के लिए बहाता आंख से नकली पानी।
हम हिंदुस्तानी, हम  हिंदुस्तानी, हम हिंदुस्तनी ।।

भूल रहा शैतान इसने हमसे युद्ध में मुंह की खाई है।
अपना हर जवान भगत सिंह, हर बाला लक्ष्मीबाई है।।
घर-घर  में अब्दुल हमीद  हैं,  जर्रे-जर्रे में  बतरा  हैं।
मातृभूमि हित लुटा  सकते खून का कतरा कतरा हैं।।

भारत के हित कुरबान कर चुके अपनी जो जवानी।
हम हिंदुस्तानी, हम हिंदुस्तानी, हम हिंदुस्तानी।।

कश्मीर से कन्याकुमारी तक अपना भारत एक है।
हिंदू, मुसलिम, सिख,ईसाई इसके सारे बंदे नेक है।।
सबके मन में भारत है दिल में इनके तिरंगा है।
सब धर्मों को देता आदर मेरा भारत सतरंगा है।।

कुचल डालिए इसे छेड़ने की हर इक कारस्तानी।
हम हिंदुस्तानी, हम हिंदुस्तानी, हम हिंदुस्तानी।।

जहां हुए तुलसी, कबीर, जायसी औ रहीम रसखान।
गंगा-जमनी तहजीब जहां , मेरी जान ये हिंदुस्तान।।
बच्चा-बच्चा  वीर  है इसका घर-घर में आजाद हैं।
इसीलिए ये देश हमारा, देखो शाद और आबाद है।।

पूरी दुनिया गाती अब तक जिसकी शौर्य कहानी।
हम हिंदुस्तानी, हम हिंदुस्तानी, हम हिंदुस्तानी।।

आओ इस पुनीत दिवस पर हम  कसम ये खायें।
हिमालय से तन जायेंगे गर देश पर आयें बाधाएं।।
अपना पल-पल ऋणी है इसका ये अपना आधार है।
यह है तो हम है  इससे हम सबको बेहद प्यार है।।
जो भी हमसे टकरायेगा उसको पड़ेगी मुंह की खानी।
हम हिंदुस्तानी, हम हिंदुस्तानी, हम हिंदुस्तानी ।।





Tuesday, March 6, 2018

गीत- दर्द दिल में छिपा मुसकराते रहे


दर्द  दिल  में  छिपा मुसकराते रहे
राजेश त्रिपाठी
वक्त कुछ इस कदर हम बिताते रहे ।
दर्द  दिल  में  छिपा मुसकराते रहे ।।
     जिसपे भरोसा किया उसने हमको छला।
     परोपकार करके हमें क्या मिला।।
     पंख हम बन गये जिनके परवाज के।
     आज बदले हैं रंग उनके अंदाज के।।
मुंह फेरते हैं वही गुन हमारे जो गाते रहे।
दर्द  दिल  में  छिपा मुसकराते रहे ।।
       कामनाएं तड़पती सिसकती रहीं।
       प्रार्थनाएं ना जाने कहां खो गयीं।।
       हम वफाओं का दामन थामे रहे ।
       जिंदगी हर कदम हमको छलती रही।।
जुल्म पर जुल्म हम बारहा उठाते रहे।
दर्द  दिल  में  छिपा मुसकराते रहे ।।
         मेहरबानियां उनकी कुछ ऐसी रहीं।
        आंसुओं का सदा हमसे नाता रहा।।
        नेकनीयत पर हम तो कायम रहे।
        हर कदम जुल्म हम पे वो ढाते रहे।
दिल दुखाना तो उनका शगल बन गया।
दर्द  दिल  में  छिपा मुसकराते रहे ।।


Wednesday, November 2, 2016

यादों में अब तक जीवित है प्यारा-सा वह गांव

-राजेश त्रिपाठी

वह पनघट के गीत और बट की ठंडी छांव
यादों में अब तक जीवित है प्यारा-सा वह गांव।
                                     
अलस्सुबह जब मां पीसा करती जांत।
साथ-साथ दोहराती जाती परभाती की पांत।
जागिए रघुनाथ कुंअर पंछी बन बोले।
रवि की किरण उदय भयी पल्लव दृग डोले।।
    फगुआ की जब तान पर थिरका करते थे पांव।
    यादों में अब तक जीवित है ......
तारे छिटके आसमान पर धरती पर हरियाली।
डाल-डाल पर जहां कुहकती कोयलिया थी काली।।
महुआ की मदमस्त महक से महका करती भोर।
पावस में जहां नाचा करते होके मगन मन मोर।।
   मंगता से लेकर हर इक को मिलती जहां थी ठांव।
   यादों में अब तक जीवित है ......
हलधर जहां खेतों पर बोते थे अपनी तकदीर।
जाड़ा, गरमी या बारिश हो सहते थे हर पीर।।
यही टेर लगाते थे बरसो राम झमाझम पानी।
फसल होय भरपूर, चमक  जाये जिंदगानी ।।
  बिटिया को घाघरा चाहिए नंगे बापू के पांव।                                     
  यादों में अब तक जीवित है प्यारा–सा वह गांव
                                     
    टेसू के फूलों के रंग से जहां मना करती थी होली।
   मनभावन कितनी लगती थी देवर-भाभी की ठिठोली।।
   राखी, कजरी, तीज त्योहार जहां आते लेकर खुशहाली।
   खेतों में लहलहाती किस्मत कूके कोयल डाली डाली।।
उस गांव तक पसर गये हैं अब आतंक के पांव। 
यादों में अब  तक  जीवित  है प्यारा–सा वह गांव  
         
        सांझ-सकारे करे महाजन हर घर का फेरा।
    जहां जवान बहुरिया देखे डाले वहीं डेरा ।।
     कहने को हिसाब करे, आंखों से कुछ नापे।
     उसकी लोभी नजर देख,जियरा थर-थर कांपे।।
     पहले जैसा रहा कहां अब सपनो का वह गांव
  यादों में अब तक जीवित है प्यारा–सा वह गांव
  
   सालों पहले घुरहू के दादा ने रुपये लिये उधार।
   बंधुआ बनीं चार  पीढ़ियां पर ना चुका उधार।।
   जाने ऐसे कितने घुरहू सहते महाजनों की मार।
   जाने कब से चला आ रहा लूट का ये व्यापार।
जिसकी लाठी भैंस उसी की, चलता उसी का दांव।
यादों में अब  तक  जीवित  है प्यारा–सा वह गांव

   जहां चैन की वंशी बजती वहां चल रही गोली।
   नहीं सुनायी देती अब मनभावन प्यार की बोली।।
   सारे  रिश्ते-नातों  को  वहां दिया गया वनवास ।
   हर दिल में राज कर रही अब पैसे की प्यास ।।
शहरों की संस्कृति घुस बैठी अब मरने लगे हैं गांव।
यादों में अब तक जीवित है प्यारा–सा वह गांव
  
     देवीलाल  बेहाल  बहुत है  बढ़ता  जाता है कर्ज।
     दवा कहां से  करवाये बहुत पुराना बापू का मर्ज।।
     दिन-दिन जवान होती बिटिया, शोहदे घर में ताकें।
     लालच  से कमली का हर दिन रोम-रोम वे नापें।।
दूल्हे बिकते अब लाखों में कैसे पूजे बिटिया के पांव। 
यादों में अब तक जीवित है प्यारा–सा वह गांव




    









  
  
     
                                     


  







Thursday, April 9, 2015

गजल

रंजो गम मुफलिसी की गज़ल जिंदगी
राजेश त्रिपाठी
रंजो गम मुफलिसी की गज़ल जिंदगी।
कैसे कह दें खुदा का फज़ल जिंदगी।।
भूख की आग में तपता बचपन जहां है।
नशे में गयी डूब जिसकी जवानी ।।
फुटपाथ पर लोग करते बसर हैं।
राज रावण का सीता की आंखों में पानी।।
किस कदर हो भला फिर बसर जिंदगी।
कैसे कह दें.....
चोर नेता हैं, शासक गिरहकट जहां के।
पूछो मत हाल कैसे हैं यारों वहां के ।।
कहीं पर घोटाला, कहीं पर हवाला।
निकालेंगे ये मुल्क का अब दिवाला ।।
इनके लिए बस इक शगल जिंदगी।
कैसे कह दें....
राज अंधेरों का उजालों को वनवास है।
ये तो गांधी के सपनों का उपहास है।।
कोई हर रोज करता है फांकाकसी ।
किसी की दीवाली तो हर रात है ।।
मुश्किलों की भंवर जब बनी जिंदगी।
कैसे कह दें....
जहां सच्चे इंसा का अपमान हो।
खो गया आदमी का ईमान हो ।।
योग्यता हाशिए पर जहां हो खड़ी।
पद से होती जहां सबकी पहचान हो।।
उस जहां में हो कैसे गुजर जिंदगी।
कैसे कह दें...
सियासत की चालों का ऐसा असर है।
मुसीबत का पर्याय अब हर शहर है।।
कहीं पर है दंगा, कहीं पर कहर है।
खून से रंग गयी मुल्क की हर डगर है।।
किस कदर बेजार हो गयी जिंदगी।
कैसे कह दें खुदा का फज़ल जिंदगी।

Saturday, March 28, 2015

गीत

 वो तेरा मुसकराना सबेरे-सबेरे
राजेश त्रिपाठी
वो तेरा मुसकराना सबेरे-सबेरे।
ज्यों बहारों का आना सबेरे-सबेरे।।
      पागल हुई क्यों ये चंचल हवा।
      आंचल तेरा क्यों उड़ाने लगी।।
      बागों में कोयल लगी बोलने ।
      मन मयूरी को ऐसा लुभाने लगी।।
कामनाओं ने लीं फिर से अंगडाइयां।
जो तुम याद आयीं सबेरे-सबेरे।।
      मौसम में रौनक नयी आ गयी।
      हर तरफ रुत बसंती है छा गयी।।
      मन हुआ बावरा तेरे प्यार में।
      तुम बिन भाता नहीं कुछ संसार में।।
तुम नहीं तो ऐसा मुझको लगा।
मन गया हो ठगा सबेरे-सबेरे।।
      तुम जिधर देखो जिंदगी सांस ले।
      तुमसे हर कली ऐसा एहसास ले।।
      गंध भर दे, तन-मन कर दे मगन।
      जग उठे मन में मिलन की अगन।।
बज उठी हैं हवाओं में शहनाइयां।
क्या तुमने कहा कुछ सबेरे-सबेरे।।
      तुम मेरी जिंदगी, तुम मेरा ख्वाब हो।
      हर सवालों का तुम ही तो जवाब हो।।
      तेरी आंखों में देखे हैं शम्सो-कमर*।
      नूर ही नूर है जिधर है तेरी नजर।।
जिंदगी जिंदगी बन गयी।
नजर तुमसे मिली जो सबेरे-सबेरे।।
      तुम विधाता का सुंदर वरदान हो।
      तुम धड़कते दिलों का अरमान हो।।
      तुम मेरी बंदगी, जिंदगी हो मेरी।
      तुम मेरी कामना, कल्पना हो मेरी।।
यों लगा घिरी सावनी फिर घटा।
तुमने जुल्फी संवारीं सबेरे-सबेरे।
* शम्सो-कमर=सूरज-चांद



Friday, September 19, 2014

हर शख्स तो बिकता नहीं है

एक गजल
हर शख्स तो बिकता नहीं है
·    राजेश त्रिपाठी
खुद को जो मान बैठे हैं खुदा ये जान लें।
ये सिर इबादत के सिवा झुकता नहीं है।।

वो और होंगे, कौड़ियों के मोल जो बिक गये।
पर जहां में हर शख्स तो बिकता नहीं है।।

दर्दे जिंदगी का बयां कोई महरूम करेगा।
यह खाये-अघाये चेहरों पे दिखता नहीं है।।

पैसे से न तुलता हो जो इस जहान में ।
लगता है अब ऐसा कोई रिश्ता नहीं है।।

जिनके मकां चांदी के , बिस्तर हैं सोने के।
उन्हें इक गरीब का दुख दिखता नहीं है।।

इक कदम चल कर जो मुश्किलों से हार गये।
उन्हें मंजिले मकसूद का पता मिलता नहीं है।।

वो और होंगे जो निगाहों में तेरी खो गये।
जिंदगी के जद्दोजेहद में, प्यार अब टिकता नहीं है।।

मत भागिए दौलत, शोहरत की चाह में।
तकदीर से ज्यादा यहां मिलता नहीं है।।

सुहाने ख्वाब दिखा ऊंची कुरसियों में बैठ गये।
लगता है उनका मजलूम के दर्द से रिश्ता नहीं है।।

यह अंधेरा दिन ब दिन घना होता जा रहा है मगर।
उम्मीद का सूरज हमें अब तलक दिखता नहीं है।।

आइए अब तो हम ही कोई जतन करें।
मंजिलों तक जो ले जाये राहबर दिखता नहीं है।।

आपाधापी मशक्कत में ना यों बेजार हों।
यहां किसी को मुकम्मल जहां मिलता नहीं है।।

चाहे जितने पैंतरे या दांव-पेंच खेले मगर।
किस्मत पे किसी का दांव तो चलता नहीं है।।

चाहे कुछ भी हो हौसला अपना बुलंद रखिएगा।
हौसला ही पस्त हो तो काम फिर बनता नहीं है।।



उनकी जुबां पे ताले पड़े हैं

एक गज़ल

उनकी जुबां पे ताले पड़े हैं

 राजेश त्रिपाठी
सदियां गुजर गयीं पर, तकदीर नहीं बदली।
मुफलिस अब तलक जहान में, पीछे खड़े हैं।।

औरों का हक मार कर, जो बन बैठे हैं अमीर।
उन्हें खबर नहीं कैसे-कैसे लोग तकदीरों से लड़े हैं।।

पांव में अब तलक जितने भी छाले पड़े हैं।
वे न जाने कितने बेबस लिए नाले खड़े हैं।।

कोई रहबर अब तो राह दिखलाए ऐ खुदा।
जिंदगी के दोराहे पे , हम जाने कबसे खड़े हैं।।

उनको अपनी शान-शौकत की बस है फिकर।
कितने गरीब मुसलसल, बिन निवाले के पड़े हैं।।

उनकी दहशत, उनके रुतबे का है ये असर।
मजलूम खामोश हैं, उनकी जुबां पे ताले पड़े हैं।।

चौराहे पे भीख मांगता है, देश का मुस्तकबिल।
उनको क्या फिकर, जिनके जूतों में भी हीरे जड़े हैं।।

मुल्क का माहौल अब पुरअम्न कैसे हो भला।
हैवान जब हर सिम्त हाथों में लिये खंजर खड़े हैं।।

किसी बुजुर्ग के चेहरे को जरा गौर से पढ़ो।
हर झुर्री गवाह है, वो कितनी आफतों से लड़े हैं।।

आप अपनी डफली लिए, राग अपना छेड़िए।
छोड़िए मुफलिसों को , आप तकदीर वाले ब़ड़े हैं।।

चांदी-सोने की थाल में जो जीमते छप्पन प्रकार।
खबर उनकी नहीं, जिंदगी के लिए जो कचडों से भिड़े हैं।।

आपका क्या, मौज मस्ती, हर मौसम त्यौहार है।
कुछ नयन ऐसे हैं, जिनके हिस्से सिर्फ आंसू ही पड़े हैं।।

इनसान होंगे जो इनसानों की मुश्किल जानते।
आप तो लगता है कि इनसानों से भी बड़े हैं।
* नाले = विलाप, चीख-पुकार
* पुरअम्न = शांतिपूर्ण

Wednesday, July 23, 2014

एक गजल

प्यार की बातें करें
राजेश त्रिपाठी
 
सिर्फ लफ्फाजी हुई है अब तलक।
आइए अब काम की बातें करें।।
कदम तो उठ गये जानिबे मंजिल मगर।
पेशेनजर है जो उस तूफान की बातें करें।।
कोठियों में तो रोशनी चौबीस घंटे है।
अब जरा झोंपड़ी की शाम की बातें करें।।
रेप, मर्डर, लूट का अब बोलबाला है जहां।
शांति के उस दूत हिंदोस्तां की बातें करें।।
योग्यता है पस्त, चमचों की चांदी हो जहां।
नये इस आगाज के अंजाम की बातें करें।।
मेहनतकशों के पसीने के गारे से बनी हैं कोठियां।
फुटपाथ पर जिसका हो बसर,अवाम की बातें करें।।
हर सिम्त, हर शख्स के हाथों में खंजर है जहां।
नफरतों के उस बियबां में, प्यार की बातें करें।।
स्वार्थ के साये में जहां, पिस रही है जिंदगी।
उस बुरे हालात में, उपकार की बातें करें।।
मजहब के नाम पर जो, मुल्क को बांटा किये।
आइए अब तो उसके, परिणाम की बातें करें।।
जुल्म सहते रहे जो, मुसलसल मुल्क में।
उनके सीने में घुमड़ते, तूफान की बातें करें।।
एक मकसद, एक जज्बा, एकता का संदेश दे।
आइए अब उस पयामे, खास की बातें करें।।
देश के हालात , बद से बदतर हो रहे।
हालात ये बदलें, आओ अब ऐसी  बात करें।।
हाथ में ले फूल, दोस्ती हम चाहते।
एक ऐसा मुल्क, पीठ पीछे जो घातें करे।।
लिखने से हालात अब बदलेंगे नहीं।
फिर भला क्यों हम बेकार की बातें करें।।
फर्ज समझा इसलिए यह लिख दिया।
आपका क्या, आप बस बहार की बातें करें।।
आग ये आपके दामन तक  पहुंचेगी हुजूर।
आइए अब मुल्क के उद्धार की बातें करें।।